छतीसगढ़ के सुकमा हमले में देश के 26 जवानों की चिंता अभी ठड़ी भी नही हुई थी कि दो दिन में ही पाकिस्तान के पुछं इलाके में दो जवानों के पार्थिव शरीर से बर्बरता की घटना सामने आयी जिससे देश की सरकार ओर सिस्टम पर सवालिया निशान लगा दिया है ओर देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वालों में इन शहीदों का नाम भी जुड़ गया है आज शहीदों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ रही है। ओर नेताओं ने भी अपने-अपने अंदाज में राजनीतिक पार्टीयों के नेताओं ने कड़ी निंदा करना शुरू कर दिया आज कड़ी निंदा शब्द इतना सस्ता ओर आसान हो गया है राजनेता हर रोज हो जवानों पर हमले की कड़ी निंदा कर रहे है देश की जनता जानता चाहती है कि क्या कड़ी निंदा करने मात्र से देश के वीर सपूतों की शहादत को भूला दिया जाएगा या फिर यू कहे कि कड़ी निंदा शब्द एक ऐसा निंदा शब्द बन जाएगा जिसे देश का कोई भी नागरिक सुनना पंसद नही करेगा क्या कड़ी निंदा मात्र से सैनिकों की बर्बरता का समाधान हैै?
अब शहीदों के अपमान का बदला लेेने का समय आ गया है ओर देश का प्रत्येक नागरिक पुछ रहा है कि देश के सैनिकों के साथ आखिर कब तक होती बर्बरता क्या इस लिए उनकों फौज में भेजा जाता है कि कोई दुश्मन उन्हें सारे आम मार कर चला जाये ओर देश के नेता केवल शहीद के परिवार को सात्वंना देकर,उनकी प्रतिमा पर पुष्प चढ़ाकर,ओर शोक प्रकट करके अपना दायित्व निभा सके।
शहीद शब्द ही एक ऐसा शब्द है जिसको सुनने मात्र से ही हम सब के रोगटें खड़े हो जाते है ओर आखों के सामने वो मंजर,रोहराट वो नौजवानों की आखों में गुस्सा जरा सोचिए क्या बीतती होगी जब जवानों की टुकड़ी पर जो अपने साथी के पार्थिव शरीर को अपने कधों पर लेकर किसी गांव या शहर में पहुचंती है जिसमें उस जवान का बचपन बीता था,जिसमें सपने सजोयें थे अपने परिवार के साथ रहने के ना जाने कितने उदाहरण एक शहीद शब्द से जुड जाते है जरा सोचिए क्या बीतती होगी उस शहीद मां,बहन, पत्नी,भाई,ओर छोटे छोटे बच्चें जो विलाप कर रहे है अपने पिता के आने का इंतजार कर रहे है। आज शहीद परिवार भी पूछने को चिख-चिख कर कह रहा है कि आखिर कब तक हम अपने लाल को यूही दुश्मनों के हाथों मरवाते रहेगे ओर आखिर कब तक देश की धरती जवानों के खुन से लाल होती रहेगी आखिर कब तक देश के जवानों के साथ बर्बरता होती रहेगी……..