“मजदूर दिवस” की आप सभी को बहुत बहुत बधाई….उन पत्रकार भाइयों को भी जो रात दिन मेहनत कर अपनी कलम से अपने परिवार की जीविका एक मजदूर की तरह चला रहें हैं…..*
‘अंतर्राष्ट्रीय श्रम दिवस’ यानि प्रतिवर्ष 1 मई का दिन, अथवा ‘मजदूर दिवस’ के रूप में मनाया जाता है, जिसे ‘मई दिवस’ भी कहा जाता है, मई दिवस समाज के उस वर्ग के नाम किया गया है, जिसके कंधों पर सही मायनों में विश्व की उन्नति का दारोमदार है, इसमें कोई दो राय नहीं कि किसी भी राष्ट्र की प्रगति एवं राष्ट्रीय हितों की पूर्ति का प्रमुख भार इसी वर्ग के कंधों पर होता है, यह मजदूर वर्ग ही है, जो हाड़-तोड़ मेहनत के बलबूते पर राष्ट्र के प्रगति चक्र को तेजी से घुमाता है और विपरीत परिस्थितियों में भी केवल यही वर्ग हर तरह की दुर्दशा का सामना करने को मजबूर होता है, लेकिन कर्म को ही पूजा समझने वाला श्रमिक वर्ग श्रम कल्याण सुविधाओं के लिए आज भी तरस रहा है, इस दिवस के अवसर पर न केवल देशभर में बल्कि पूरे विश्व में मज़दूरों के कथित सम्मान हेतु बड़ी-बड़ी सभाएं होती हैं, बड़े-बड़े सेमीनार आयोजित किए जाते हैं, जिनमें मजदूरों के हितों की बड़ी-बड़ी योजनाएं बनती हैं और ढ़ेर सारे लुभावने वायदे किए जाते हैं, जिन्हें सुनकर एक बार तो यही लगता है कि मजदूरों के लिए अब कोई समस्या ही बाकी नहीं रहेगी, लोग इन खोखली घोषणाओं पर तालियां पीटकर अपने घर लौट जाते हैं किन्तु अगले ही दिन मजदूरों को पुनः उसी माहौल से रूबरू होना पड़ता है, फिर वही शोषण, अपमान व जिल्लत भरा तथा गुलामी जैसा जीवन जीने के लिए अभिशप्त होना पड़ता है, *आपकों बतादें बहुत से स्थानों पर तो ‘मजदूर दिवस’ पर भी मजदूरों को ‘कौल्हू के बैल’ की भांति काम करते देखा जा सकता है यानी जो दिन पूरी तरह से उन्हीं के नाम कर दिया गया है, उस दिन भी उन्हें दो पल का चैन नहीं, ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक ही है कि आखिर मनाया किसके लिए जाता है ‘मजदूर दिवस’..?* बेचारे मजदूरों की तो इस दिन भी काम करने के पीछे यही मजबूरी होती है कि यदि वे एक दिन भी काम नहीं करेंगे तो उनके घरों में चूल्हा कैसे जलेगा, बहुत से कारखानों के मालिक उनकी इन्हीं मजबूरियों का फायदा उठाकर उनका खून चूसते हैं और बदले में उनके श्रम का वाजिब दाम तक उन्हें उपलब्ध नहीं कराया जाता..?ऐसे में ये गम्भीर और विचारिणीय मुद्दा हैं….?