के.के. शर्मा के परिवार ने पूज्य गुरु जी को दिया कोटि-कोटि धन्यवाद

सिरसा:-डेरा सच्चा सौदा के पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की पावन प्रेरणा के चलते उनके एक अनुयायी ने विदेश से भारत आकर के.के शर्मा को अपनी एक गुर्दा दान किया। शर्मा का परिवार गुर्दा दानकर्ता के साथ-साथ पूज्य गुरुजी का भी कोटि-कोटि धन्यवाद कर रहा है, जिनकी प्रेरणा से उन्होंने अपने शरीर का अंग दान किया है।

8 दिसंबर को भारत आए थे. डेरा सच्चा सौदा के अनुयायी नरेंद्र इन्सां मूलरूप से तो पेहवा के रहने वाले हैं, लेकिन उनका बिजनेस इटली समेत कई देशों में चलता है। बातचीत में नरेंद्र ने बताया कि वे गत वर्ष 8 दिसंबर को भारत अपने घर आए थे। यहां से उन्हें मार्च के अंतिम सप्ताह या फिर अप्रैल के प्रथम सप्ताह में वापस इटली जाना था।

वहां पर उनका सब्जियों का व्यापार है। इटली से बाहर के देशों में वे सब्जी की सप्लाई करते हैं। नरेन्द्र इन्सां ने स्वेच्छा से पूज्य गुरु जी की पावन प्रेरणा पर चलते हुए जीते जी गुर्दादान का फार्म भरा हुआ है।

कुछ घंटों में केके शर्मा को नया जीवन मिला

जब उन्हें के.के शर्मा की बीमारी और गुर्दे की जरूरत के बारे में पता चला तो वे तुरंत उनकी मदद को तैयार हो गए। फिर वे के.के. शर्मा के परिवार से मिले और मदद करने की बात कही। सभी जरूरी जांच आदि होने के बाद शुक्रवार सुबह उनकी किडनी ट्रांसप्लाट का काम शुरु हुआ। कुछ घंटों में ही नरेंद्र की किडनी के.के. शर्मा को प्रत्यारोपित कर दी गई।

शनिवार को बातचीत में नरेंद्र ने बताया कि पूज्य गुरुजी के आशीर्वाद से पूरी प्रक्रिया बेहद आसान रही। मुझे शरीर में किसी तरह की कोई दिक्कत या बदलाव महसूस नहीं हुआ। पूज्य गुरुजी की रहमत ही है कि मुझे किसी का जीवन बचाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। बचाने वाले तो खुद सतगुरु ही हैं, जिन्होंने इतना सब करने का साहस दिया।

हमने धरती पर भगवान देख लिया है: भवन शर्मा

के.के. शर्मा का परिवार उन्हें नया जीवन मिलने पर खुशी में फूला नहीं समा रहा है। उनकी पत्नी भवन शर्मा ने बातचीत में कहा कि उनके परिवार ने धरती पर भगवान देख लिया है। सच में पूज्य गुरु जी की महिमा का बखान करना संभव नहीं है, उन्हें कोटि-कोटि प्रणाम।

भवन के मुताबिक उनके पति की बीमारी के चलते पूरा परिवार बहुत परेशान था। बेटे दिव्यांक ने अपनी नौकरी छोड़कर पिता के उपचार में समय लगाया। बेटी दिव्यांका दसवीं कक्षा में पढ़ती है। उसे डलहौजी के एक हॉस्टल में छोड़ना पड़ा। यहां तक कि उसे पिता के ट्रांसप्लांट आदि के बारे में अभी तक कुछ नहीं बताया गया है।