शान्ति स्वारूप तिवारी,नई दिल्ली!
बड़े अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि इस देश को लूटना हो तो मुफ्त की रोटियां बांटो,पैसे बांटो,मुफ्त और लालच की सुख सुविधा बांटो ।।
यही मुफ्त और लालच ने इस देश को कई बार गुलाम बनाया, मुफ्त और लालच हमारे खून में बस सदियों से हमने गुलामी झेली है सिर्फ मुफ्त और लालच के चक्कर में और शायद आगे भी यही होगा।।
इस देश की घटिया राजनीतिक लोग बखूबी जानते हैं कि अगर इस देश को जीतना है तो इन्हें मुफ्त की हड्डी फेंक दो लेकिन सबसे प्रश्न ये क्या मुफ्त की हड्डी से इस देश और देश वासियों की तरक्की होगी..??
राहुल गांधी ने ₹72000/ सालाना देने का जो दांव खेला है उस से 100% गरीबी मिटेगी नही बल्कि लोग आराम पस्त और नपुंसक बनेंगे!!
इसके अलावा देश पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा उस से देश का विकाश भी कहीं न कहीं प्रभावित होगा क्योंकि राहुल गांधी अपने घर से पैसा नही देंगे इसी देश के खजाने से ही देंगे।
ऐसे वादे क्यों किया जाते हैं जो देश और देशवासियों को ही खोखला कर दे.?? सिर्फ इसलिए कि किसी तरह चुनाव जीता जाय.??
चुनाव आयोग को ऐसे वादे करने पर प्रतिबंध लगाना चाहिए जिन वादों से देश और देश वासियों के बंटाधार हो।। क्या चुनाव आयोग के पास ऐसे सलाहकार नही होते जो उन्हें राय दे सकें कि गलत और सही क्या है.? देश की गरीबी रोजगार से मिटेगा या मुफ्त में पैसे बांटने से.??
जागो देश * जागो जनता