इस समझौते का उद्देश्य हिंद महासागर के किनारों (आईओआर), भारतीय और अटलांटिक महासागर से जुड़े अफ्रीकी देशों, यूनेस्को के ढांचे के अंतर्गत लघु द्वीपीय देशों के लिए क्षमता निर्माण की दिशा में प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना करना है। परिचालनगत सामुद्रिक विज्ञान मछुआरों, आपदा प्रबंधन, जहाजरानी, बंदरगाह, तटीय राज्यों, नौसेना, तट रक्षक, पर्यावरण, दैनिक परिचालन को सुचारू रूप से चलाने के लिए अपतटीय उद्योगों जैसे विभिन्न क्षेत्रों को सूचनाएं उपलब्ध कराने की दिशा में प्रणालीगत सामुद्रिक विज्ञान अध्य्यन आयोजित करने के लिए एक कारगर गतिविधि है।
केन्द्र सरकार क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण, ज्ञान साझा करने और सूचनाओं के आदान प्रदान जैसे विभिन्न क्षेत्रों में सहायता मुहैया कराएगा। भारत यूनेस्को की कार्य योजना के प्रभाव और दृश्यता को बढ़ाकर यूनेस्को और इसके अंतर सरकारी सामुद्रिक विज्ञान आयोग (आईओसी) के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत का प्रतिनिधित्व कर सकता है।
यूनेस्को श्रेणी-2 केन्द्र की स्थापना हिंद महासागर में भारत को एक अग्रणी देश के रूप में उभरने का अवसर प्रदान करेगी। यह भारत को हिन्द महासागर की सीमाओं से जुड़े दक्षिण एशियाई और अफ्रीकी देशों सहित हिन्द महासागर के अंतर्गत आने वाले देशों के साथ सहयोग बढ़ाने और रिश्तों को सुधारने में भी मदद करेगा। केंद्र समुद्री और तटीय स्थिरता से जुड़े मुद्दों का समाधान निकालने की दिशा में दुनियाभर में तकनीकी और प्रबंधन क्षमता को बनाने की आवश्यकता को पूरा करेगा और समुद्र से जुड़े प्राकृतिक खतरों से कुशलतापूर्वक निपटने के लिए पर्याप्त माहौल तैयार करेगा। यह केन्द्र समुद्र वैज्ञानिक अनुसंधान क्षमता निर्माण से जुड़े सतत विकास लक्ष्य-14 (एसडीजी-14) को प्राप्त करने में अहम योगदान दे सकता है, जो लघु द्वीपीय विकासशील राष्ट्रों और सबसे कम विकसित देशों को मदद करने के भारत के वादे को भी पूरा करेगा।
सी2सी छात्रों और अन्य प्रतिभागियों के कौशल में विकास करने के प्रति कृतसंकल्प है, जिससे देश के भीतर और बाहर रोज़गार के अवसर बढ़ेंगे। सी2सी की स्थापना से भारत में रोज़गार निर्माण के लिए सहायक विकास की दिशा में वृद्धि की भी उम्मीद है। वर्तमान में यह केन्द्र हैदराबाद में भारतीय समुद्री सूचना सेवा केन्द्र (आईएनसीओआईएस) पर उपलब्ध स्टेट ऑफ द आर्ट सुविधा के साथ परिचालनगत है। अब तक इस केन्द्र से परिचालनगत सामुद्रिक विज्ञान की विभिन्न विधाओं में 681 वैज्ञानिकों को प्रशिक्षित किया जा चुका है, इनमें 576 वैज्ञानिक भारतीय और 105 वैज्ञानिक दुनियाभर के अन्य देशों से हैं। इस केन्द्र में ईमारत और प्रशिक्षण छात्रावास जैसी अन्य आधारभूत सुविधाओं को स्थापित किया जा रहा है। इस पूरी योजना एवं समझौते के अंतर्गत दुनियाभर से वैश्विक स्तर की प्रतिभाओं और प्रशिक्षुओं को आमंत्रित करने और दीर्घ अवधि के पाठ्यक्रम (3-9 महीने) का खाका तैयार करने का प्रावधान भी किया गया है।