प्राचीन विश्व का प्रसिद्ध विश्वविद्यालय नांलदा जो छटवीं शताब्दी.में पुरे वर्ल्ड का नॉलेज का सेन्टर थी जहाँ कोरिआ ‘चीन ‘जपान ‘तिब्बत ओर तुर्की से स्टूडेंट्स और टीचर्स पढ़ने-पढ़ाने आते थे लेकिन बख्तियार खिलजी नाम के एक सिरफ़िरे ने इसको तहस -नहस कर दिया था। उसने नांलदा यूनिवर्सिटी में आग लगवा दी थी जिससे इसकी लाइब्रेरी में रखी करीबन 35 हजार बेशकीमती पुस्तकें जलकर राख हो गयी थी। इस दौरान उसने यहाँ पढ़ने वाले एवं धार्मिक गुरुओं को मौत के घाट उतार दिया था।
पहली शताब्दी से लेकर 11 वीं शताब्दी तक भारत की आर्थिक स्थिति बहुत सुदृढ़ थी जिसके चलते 1193 ईस्वी में इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी ने भारत पर आक्रमण किया एवं 4 वर्षों तक हिन्दुस्तान में भयंकर लूटपाट की। नालंदा यूनिवर्सिटी उस समय राजगीर का उपनगर हुआ करती थी। यह राजगीर से पटना को जोड़ने वाली सड़क पर स्थित है। कहा जाता है कि एक बार बख्तियार खिलजी बहुत बुरी तरह से बीमार पड़ा था। उसने अपने हकीमों से इलाज करवाया लेकिन उसे कोई स्वास्थ्य लाभ नहीं हुआ तो उसने अपने हकीमों की सलाह पर नालंदा की आयुर्वेद शाखा के प्रधान राहुल श्रीभद्र को बुलवाया।
उसने राहुल श्रीभद्र से कहा की मेरा इलाज मेरे वतन की दवाओं से ही होना चाहिए और अगर मैं एक पखवाड़े में स्वस्थ नहीं हुआ तो तुम्हें मौत की सजा दे दी जायेगी। श्रीभद्र ने कुछ सोचा एवं खिलजी की शर्त मान ली। कुछ दिन बाद वह अपने हाथ में एक पुस्तक लेकर लौटा एवं खिलजी को कहा की मैं आपको कोई भी ओषधि नहीं दूंगा लेकिन अगर आप मन से यह पूरी किताब पढ़ लेंगे तो आपको जल्द ही स्वास्थय लाभ प्राप्त होगा। दरअसल श्रीभद्र ने उस किताब के पन्नों पर औषधीय लेप चढ़ा दिया था, खिलजी अपनी अँगुलियों पर थूंक लगा कर उसके पन्ने पलटता हुआ जल्द ही स्वस्थ हो गया। श्रीभद्र को जब उसके साथयों ने पूछा की ऐसा नामुमकिन काम उसने कैसे किया तो उसने सबको असलियत बता दी और जल्द ही यह बात खिलजी तक पहुँच गयी। खिलजी ने श्रीभद्र का अहसान मानने की बजाय नालंदा यूनिवर्सिटी पर आक्रमण कर दिया एवं जो भी सामने आया उसे मौत के घाट उतार दिया गया एवं पुरे नालंदा परिसर को आग लगवा दी। कहा जाता है की यह आग लगातार तीन महीनों तक जलती रही एवं समस्त बहुमूल्य साहित्य को नष्ट करके ही बुझी।
आर.बी.अैल. निगम वरिष्ठ पत्रकार