श्रीकृष्ण कर्णामृत ग्रन्थ के अनुसार भगवान व भगवान का नाम अभिन्न होता है। यदि हम ऐसी परिस्थिति में हैंं, जहां हम भगवान को भोग नहीं लगा सकते, शादी, आफिस , स्कूल, बर्थडे पार्टी अथवा कोई आफिस में अचानक हमें कुछ खाने के लिए देता है, तब ऐसी स्थिति में हम अपने प्रिय भगवान को स्मरण करेंगे, मन ही मन उनका नाम अथवा हरे कृष्ण महामन्त्र बोलेंगे तथा इस बात का ध्यान रखेंगे कि जो मैं खा रहा हूं, इसको खाना भगवान को पसन्द है कि नहीं अर्थात् हम भगवान को भोग लगाकर व बिना भोग लगाए मांस, मदिरा, प्याज़, लहुसन, इत्यादि नहीं खाएंगे। हमारे प्रियतम, हमारे सर्वस्व जो भगवान श्रीकृष्ण हैं, उन्हें पसन्द नहीं।
कहने का मतलब जो फल, मिठाई व भोजन इत्यादि भगवान को भोग लग सकता है, उन वस्तुओं को हम भगवान का स्मरण करते हुए खा सकते हैंं। वैष्णव तो ये भी मानते हैं की कुछ भी खाने से पहले तीन बार श्रीविष्णु, श्रीविष्णु, श्रीविष्णु नाम का उच्चारण करना चाहिए। ऐसा करने से खाने वाली वस्तु भगवान के अर्पण हो जाती है।