अशोक कुमार झा
रांची। आजकल ऑनलाइन इंट्री का जाल बुनकर युवाओं को फ़साने का धंधा जोरों पर चल रहा है। यह धंधा अखबारों में और इंटरनेट पर ऑनलाइन डाटा इंट्री का कार्य के लिए विज्ञापन के माध्यम से चलाया जा रहा है , जिसमें घर बैठे डाटा इंट्री काम १००० से ३००० तक कमाने का भरोसा दिया जाता है। इतनी आमदनी की लालच में आकर युवा उस ठगी करने वाले के झांसे में आ जाते हैं। उसके बाद उस फर्जी कंपनी द्वारा एक फर्जी एग्रीमेंट बनवाया जाता है , जिसके लिए युवाओ का ID प्रूफ और एड्रेस प्रूफ की कॉपी मांगी जाती है , फिर उसे उसके मोबाइल में दिए गये otp एक लिंक पर डालने को कहा जाता है। उसके बाद उसको एक स्टाम्प पेपर पर बना हुआ एग्रीमेंट की कॉपी भेजा जाता है , जिसे उसकी otp से varified मान लिया जाता है।
उस स्टाम्प पेपर में बने हुए एग्रीमेंट में लिखा होता है कि उसकी उसकी दी हुई सारी एंट्री को दिए हुए समय यानी १० दिनों के अन्दर पूरा करना है , जिसमें ९० प्रतिशत से अधिक एंट्री सही होने चाहिए। अगर युवा दिये हुए समय सीमा में उसका काम करके दे देगी तो वह कंपनी उसको १० की का मेहनताना ३० हजार रूपया देगी और अगर युवा उसके तय समय के अंदर ९० प्रतिशत से अधिक सही एंट्री नहीं कर पायेगी तो उल्टा युवाओं को ४९०० रुपये हर्जाना देना पड़ेगा।
इस अग्रीमेंट को पढ़ने के बाद युवा ३० हजार १० दिन में कमाने व हर्जाना देने से बचने के लिए अपना सारा काम को छोड़कर उसका काम करने में पुरे तन और मन से लग जाता है और उस तय समय सीमा में दिन रात मेहनत करके उसे पूरा करता है और अपनी एंट्री को दुबारा से चेक करके उसको सबमिट कर देता है।
अब युवा इस आशा में होता है कि उसको ४-५ दिन में ३० हजार रुपये मिल जायेगा , जिससे वह अपनी बहुत सारी जरूरतों को पूरी कर पायेगा , परन्तु उसके बाद जो होता है उसका उसको अंदाजा भी नहीं होता है।
उसके बाद में जब वह कंपनी के लोगो को अपने पेमेंट का स्थिति जानने के लिए फ़ोन करता है या मेल करता है तो उसको बताया जाता है कि उसने कंपनी के दिए हुए शर्तों को पूरा नहीं किया है। यानि कंपनी जब उसके एंट्री का Q. C. चेक करवायी तो Q C रिपोर्ट जो USA से तैयार की गयी है उसमें उसकी सारी एंट्री गलत पायी गयी और इसलिए कंपनी के साथ हुए एग्रीमेंट के मुताविक उसको ४९०० रुपये का हर्जाना भरना होगा। अन्यथा दिए हुए शर्त के मुताविक कंपनी उसके ऊपर क़ानूनी करवाई करने के लिए बाध्य होगी और उसके बाद उसके उस क़ानूनी करवाई में हुए कंपनी के खर्चे की भरपाई भी करनी होगी। अब वह युवा पूरी तरह से लाचार और वेबस हो जाता है। उधर कंपनी वाले उसके ऊपर फ़ोन करके और मेल करके उसके ऊपर पैसे जमा करने और उस केस को न्यायलय में जाने से रोकने के लिए उसके ऊपर दवाब बनाते है। उसको कंपनी के लोगों द्वारा हर तरह डराया और धमकाया जाता है।
तब जाकर वह अपनी सुरक्षा की मांग के लिए पीएमओ में अपनी शिकायत संख्या -PMOPG/E/2019/0030218 के द्वारा पूरी घटना की जानकारी देता है और उस जालसाजी से बचाने की सुरक्षा की गुहार लगाता है , जिससे खुद को उस ठग कंपनी के जाल से उसे बचा सके , जो उसको अब एक क़ानूनी जाल में फसाकर ४९०० रूपया हर्जाना देने को बाध्य कर रहा है।
परन्तु पीएमओ के द्वारा जाँच के लिए यह मामला “मुख्यमंत्री जनसंवाद, झारखण्ड सरकार ” को स्थानान्तरित कर दिया जाता है। फिर मुख्यमंत्री जनसंवाद, झारखण्ड सरकार के द्वारा आवेदक जाता है की यह मामला दूसरे राज्य (महाराष्ट्र ) का है, इसलिए वह इसमें आवेदक की कोई मदद नहीं कर सकता है।
उधर कंपनी द्वारा आवेदक को न्यायलय द्वारा समन जारी करवाने व उसको घर से उसको उठवा कर महाराष्ट्र ले आने की धमकी दिया है और तरह तरह की मानसिक प्रतारणाएँ दी जाती है और उसके पास कंपनी को हर्जाने देने के लिए पैसे न होने के कारन वह चुपचाप सब कुछ सहने को मजबूर है। साथ उसको हमेशा एक डर सताता रहता है कि पता नहीं कब पुलिस उसको बिना किसी जुर्म के गिरफ्तार करने आ जाये और उसको ले जाकर कहीं महाराष्ट्र के उस जालिम फर्जी कंपनी के पास न सौप दें या उसको ४९०० रुपये न चूका पाने के जुर्म में उसको जेल में दाल दें और उसके बाद उसके पत्नी व बच्चों को प्रताड़ित न करें।
वैसे तो अब उसके पास किसी के मदद की कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है , क्योकि मदद मांगने पर पीएमओ और झारखण्ड सरकार दोनों एक दूसरे के ऊपर डालकर अपना पल्ला झाड़ रही है , परन्तु अगर ऐसा सचमुच में हो गया और एक निर्दोष व लाचार व्यक्ति की मदद के लिए कोई आगे नहीं आया और उसको महाराष्ट्र की वह ठग कंपनी अपनी मनमानी करने व अपना शिकार बनाने में कामयाब हो गयी तो उसके बाद आम लोगों के सरकार और कानून पर बने हुए भरोसे का क्या होगा यह कह पाना अभी मुश्किल है।